कस्ती जीवन की न जाने कौन किनारे जाती है,
हर लहर जिसकी बहती जाती है,
लोग कहते है इसलिए जीवन कुछ नही...
बस एक मंद गति की धारा है...
एक मजधार की पंक्ति सुनाता हुन
किस्सा जिसका में गुनगुनाता हुन
कहता था ज़िन्दगी जिसे मैं
आज भी जिंदा हुन उसे बतलाता हुन
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