ख्वाब थोड़े हमने भी सांचोये थे,
कुछ ख़ास पलों को लम्हा बनाये थे,
यूँ गुज़री वक़्त की सुई हाथ से,
रेत ही बचे थे किनारे के घर में से,
सपने तो यूँ ही दिख जाए करते हैं,
खुली आंख भी ख्वाब दे जय करते हैं,
पर दुनिया आज भी सच मानती नही,
हर रूह में सिमर है कभी मानती नही,
@sbRadicle
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