कुछ बातें वक़्त के मुलजिम बन जाते हैं,
और कुछ दिल की सौगात बन जाते हैं,
कैद तो हम खुद के लब्जों में हैं
और इल्ज़ाम ज़माने के शोर को बताते हैं
कितनों को आज इस वक़्त ने सवेरे
कुछ तो वक़्त के सहारे ही वक़्त गुज़रे
हुम तो बेगुनाह होते हुए भी इंतेज़ार कर रहे हैं
उस घड़ी जब हर लम्हों को वक़्त आज़ाद कर रहे हैं।
@sbRadicle
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