आखिर क्यूँ रह रही हो दिल में
जबकि इसकी कोई हकीकत ही नहीं ..
बस रह रह कर सताती रहती हो
ना चाहते हुए भी हर पल याद आ जाती हो
कभी जागते हुए कभी बेहोशी में आती हो
जो पूरी न हो सके कभी भी
तुम वोही सपना बनकर रुला जाती हो
आखिर फिर क्यूँ आती हो ख्यालों में मेरे
जब तुमने जिंदगी से हमको जुदा कर दिया है
इस अधूरी सफ़र में छोड़ गए मुझको और
मेरे प्यार क जज्बातों को जला कर राख कर दिया है
वादा किया था खुद से के दूर हो जाऊं
तेरी हर वो ख्याल इस दिल से
पर आज तुमने फिर वो याद दिला दिया
जिसको बुलाया था मैंने इतनी मुस्किल से
अब तो बस एक ही बिनती है सनम तुझसे
बस रुक्सत कर दे मुझे अपनी मोहब्बत से
इतनी तो इनायत बनती है मेरी इस सफ़र पर
तेरे प्यार के अलावा कुछ और भी चाहत है जिंदगी से